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युक्त शास्त्रों में गूंथा हुआ है । सूत्र, नियुक्ति, चूरिंग, भाष्य और टीकायें पंचांगी हैं । इनमें से एक भी अंग को नहीं मानने वाले वस्तुतः आगमों को ही अमान्य ठहराने वाले हैं। सूत्र के रचयिता श्री गणधर भगवंत हैं तथा अर्थ बताने वाले श्री अरिहंतदेव हैं | श्री गणधर भगवंत के वचनों को मान्य रखना और श्री अरिहंत भगवंत के कथन की उपेक्षा करना बुद्धिमत्ता का कार्य नहीं है ।
सूत्र केवल सूचना रूप होते हैं । सूत्रों द्वारा दी गई सूचना जिसमें विस्तार से कही गई है उन्हीं को नियुक्ति, भाष्य और चूरिण आदि माना गया है। उनके रचनाकार श्रुतकेवली, पूर्वधर तथा अन्य बहुश्रुत भवभीरू महर्षि हैं । वे असाधारण गीतार्थ, विद्वान और पण्डित हैं । उनके वचनों को मानना बुद्धि की सार्थकता है ।
प्रतिमा की वंदनीयता के प्रमारण :
प्रतिमा निषेधकों के माने हुए बत्तीस सूत्र अथवा आगमों के नाम निम्नानुसार हैं
:
ग्यारह अंग, बारह उपांग, नंदी, अनुयोग, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन्, बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ और दशाश्रुतस्कंध ।
इन बत्तीस सूत्रों में भी स्थान स्थान पर स्थापना - निक्षेपा की सत्यता, माननीयता एवं वंदनीयता बताई हुई है । उसकी थोड़ी सी हकीकत नीचे माफिक है।
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