________________
५७
हिंसा निहित है । इन दोनों प्रकार की दलीलों का सुयुक्तिपूर्ण एवं हृदयंगम जवाब इस पुस्तक में दी गई प्रश्नोत्तरी में मिल जायगा। प्रागम मानने वालों को, पंचागी को भी मान्य करना ही चाहिये:
प्रतिमा को नहीं मानने वाला 'स्थानकवासी' वर्ग भी किसी रूप में आगम में तो विश्वास करता ही है। प्रतिमा वीतराग के रूपी आकार की स्थापना है परन्तु आगम तो श्री वीतराग के अरूपी ज्ञान की अक्षरशः स्थापना है। श्री वीतराग के साक्षात आकार की स्थापना को नहीं मानने की हिम्मत करने वाले भी श्री वीतराग के अरूपी ज्ञान के अक्षराकार-स्थापनास्वरूप आगम को नहीं मानने का साहस नहीं करते। यह बात भी स्थापना के अप्रतिहत प्रभाव को ही सूवित करती है।
स्थानकवासी वर्ग पैंतालीस पागम में से अपने इष्ट के रूप में बत्तीस आगम और वे भी मूल मात्र ही मानता है। ऐसा मानते हुए भी इन बत्तीस आगमों में भी स्थापना निक्षेपा की कितनी प्रबल व्यापकता रही हुई है, यह समझाने के लिये परोपकारी शास्त्रकार महर्षिों ने कम प्रयास नहीं किया है । श्री जिनेश्वर देव का धर्म श्री जिनेश्वरदेव की आज्ञा के पालन में है न कि मात्र कल्पित दया के कल्पित प्रकार के पालन में । ____ जहाँ दया वहाँ जिनधर्म, ऐसी व्याख्या यदि निरपेक्ष है तो वह अधूरी और असत्य है। जहाँ श्री जिन की आज्ञा वहाँ श्री जिन का धर्म, यह संपूर्ण और सच्ची व्याख्या है। श्री जिन की आज्ञा आगमों में निबद्ध है और आगमों का अर्थ पंचांगी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org