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________________ फिर भी इस जगत् में उसी का विरोध करने वाला, उसके आगे जैसे तैसे बाधा खड़ी करने वाला और पूजा के मूल को उखेड़ने में ही अपने जन्म की सार्थकता समझने वाला वर्ग भी है, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि "इस जगत् में ज्ञानी जितना उपकार कर सकता है उसकी अपेक्षा अज्ञानी अधिक अपकार कर सकता है। अज्ञान एक भयंकर वस्तु है । प्रज्ञान के कारण इस जगत् में जितने अनर्थ होते हैं उतने हिंसा आदि क्रू र पापकर्मों से भी नहीं हो सकते। सारे जगत् पर अज्ञान का साम्राज्य छाया हुआ है। इसकी छाया तले रहने वाली प्रात्मा जिन प्रतिमा और उसकी पूजा का विरोध न करे, यह कैसे हो सकता है।" जगत् में ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान अधिक है, सुयुक्तियों की तुलना में कुयुक्तियों की मात्रा अधिक है, उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि और निराग्रही आत्माओं से मिथ्या दृष्टि एवं दुराग्रही प्रात्माएँ अधिक हैं, यह बात श्री जिन प्रतिमा और उसकी पूजा के विरोधी प्रचार कार्य से प्रत्यक्ष प्रकट होती है। श्री जिनप्रतिमा उसकी पूजा करने वालों को प्रत्यक्ष रूप से अनेक लाभ देती रही है तथा सर्व सिद्धान्तवेदी सज्जन पुरुषों ने उसको अपने अन्तःकरण से समर्थन दिया है फिर भी अज्ञान कुवासना ग्रस्त तथा प्राग्रह के कारण मतांध बने लोग उसका खंडन करने में कुछ भी बाकी नहीं रखते। प्रतिमा और उसकी पूजा के निषेधकों की मुख्य दलील दो हैं । एक तो यह कि प्रतिमा जड़ है तथा दूसरी यह कि पूजा में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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