________________
पर आगे बढ़ने के लिये अगम्य उपदेश देने वाले मूल्यवान ग्रंथ हैं। पथभ्रष्ट भवाटवी के पथिकों को राह बताने के लिये प्रकाश स्तंभ हैं, आधि, व्याधि व उपाधि के त्रिविध ताप से जली हुई
आत्माओं को विश्राम के लिये आश्रय स्थान हैं । कर्म तथा मोह के आक्रमण से व्यथित हृदयों को पाराम देने के लिये संरोहिणी औषधि है। आपत्ति रूपी पहाड़ी-पर्वतों में घटादार छायादार वक्ष हैं। दुःख रूपी जलते दावानल में शीतल हिमकट है। संसार रूपी खारे सागर में मीठे झरने हैं। संतों के जीवन प्राण हैं। दुर्जनों के लिये अमोघ शासन है । अतीत की पवित्र स्मृति है । वर्तमान के आत्मिक विलास भवन हैं। भविष्य का भोजन है । स्वर्ग की सीढ़ी है। मोक्ष के स्तम्भ हैं। नरक-मार्ग में दुर्गम पहाड़ है तथा तिर्यंचगति के द्वारों के विरुद्ध शक्तिशाली अर्गला है।" भक्ति के पीछे रहस्य :
तीर्थंकरों के प्रति जैनों की भक्ति उन्मादी नहीं वरन् सहेतुक, प्रमाण सहित एवं सम्यग्ज्ञान से युक्त है। उसके पीछे गहन आध्यात्मिक रहस्य, मानसशास्त्र के सिद्धान्त तथा सर्वोच्च नीति-नियमों का पालन रहा है। उन सबके विस्तृत विवेचन, आगमशास्त्रों तथा उनसे संबंधित विशालकाय साहित्य में, बुद्धिगम्य ढंग से वरिणत हैं। अज्ञानवश विरोध :
महान् उपकारी विश्ववंद्य श्री वीतरागदेव की निविकार, शान्त, ध्यानावस्थित मुद्रा जगत् पूज्य है, सभी दुःखों का नाश करने वाली है तथा सभी सुखों की प्राप्ति का परम साधन है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org