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वाली आत्माओं की उनकी स्मृति को ताजी बनाने वाले मंदिरों एवं मूर्तियों को सर्वत्र प्रतिष्ठापन करने की होती है ।
सम्मान का भाव जागृत करने हेतु :
प्रजा तीर्थकरों के दर्शन से वंचित न रह जाय इस उद्देश्य से बड़े २ तीर्थ बनवाये जाते हैं, बडे २ यात्रागमन, समारंभ, चैत्य, रथोत्सव, महापूजा और ऐसी अन्य कई उत्साहजनक प्रवृतियाँ करने में आती हैं और ऐसा करके अपना तथा प्रजा का तीर्थंकरों की तरफ के सम्मान का भाव जागृत करने तथा निरन्तर चालू रखने के प्रयत्न किये जाते हैं ।
श्री तीर्थंकरों के गुरणों के जानकारों से ऐसा किये बिना रहा ही नहीं जा सकता । कैसी भी प्रवृत्ति में पड़ा हुम्रा व्यक्ति भी इन वाद्ययंत्रों की आवाज से सिर ऊँचा उठाये बिना रह नहीं सकता । जाने अनजाने भी आत्मिक उन्नति के योग्य बीजारोपण उसकी आत्मा में पड़ जाते हैं । वे बीज पत्तों के रूप में बदल कर भविष्य में बड़ा रूप धारण कर लेते हैं ।
श्री जिनमंदिरों की कल्याणकारिता :
श्री जिन मंदिर मूर्तियों तथा उनकी पूजा के महोत्सव आत्मोन्नति एवं आत्मविकास के अनन्य साधन हैं, धार्मिक जीवन के लक्ष्यबिंदु हैं तथा त्रिकालिक उत्तमोत्तम कर्तव्य हैं, कारण कि छोटी बड़ी धार्मिक प्रवृत्तियाँ प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में वहीं से उत्पन्न होती हैं । श्री जिनमंदिरों की महिमा का वर्णन करते हुए एक विद्वान पंडित ने ठीक ही कहा है कि"श्री जिनमंदिर विकास मार्ग से विमुख प्राणियों को इस मार्ग
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