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गुणज्ञ भक्तों की भावना :
सभी जीवों के विकास में सब समय समान रूप से उपकारक श्री तीर्थंकर देवों का उपकार स्मृति पट पर ताजा बना रहे तथा विस्मरण न हो जावे इस कारण उनकी उपस्थिति एवं अनुपस्थिति में उनके प्रति रहने वाली सन्मुखवृत्ति को बनाये रखने के लिये प्रतिमा तथा मन्दिरों द्वारा भक्ति करने की प्रथा विवेकी वर्ग में सर्वदा होती है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
संसार पर किये हुए उनके उपकार बुद्धिशाली आत्माओं को सहज रूप से वैसा करने की प्रेरणा देते हैं । इस उपकार को समझने वाले उनकी प्रतिमा के दर्शन किये बिना अन्न या जल भी नहीं लेते। पूरे दिन यदि दर्शन नहीं हो तो उपवास करते हैं। हमेशा त्रिकाल दर्शन तथा सात बार चैत्यवन्दन अवश्य करने की प्रतिज्ञा धारण करते हैं। श्री तीर्थंकरों के प्रति इस महान् पूज्यभावना के परिणाम स्वरुप स्थान स्थान पर बड़े बड़े मन्दिर स्थापित होते हैं और उनमें बहुत सी मूर्तियां प्रतिष्ठित होती हैं। बड़े शहरों, कल्याणक स्थलों तथा अन्य महत्वपूर्ण व सामान्य स्थलों में अनेकों मन्दिर एवं प्रतिमाएँ अस्तित्व में आती हैं। विवेकी आत्मा सदा ऐसे सुन्दर अवसर की हार्दिक कामना करते हैं कि सारी पृथ्वी श्री जिन मन्दिरों से सुसज्जित हो जावे ।
अाधुनिक संस्कृति के पुजारी को दुनिया में हर स्थान और हर गाँव में हाई स्कूल, हॉस्पिटल अथवा पोस्ट ऑफिस आदि स्थापित करने की महत्वाकांक्षा होती है । इमसे भी अनेक गुरणी महत्वाकांक्षा श्री तीर्थंकर देवों के सर्वोच्च गुणों को पहचानने
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