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________________ ५२ को उपादेय के रूप में आगे नहीं रक्खा परन्तु च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य तथा मोक्ष अवस्थाओं को आगे रखकर ही उनकी उपासना की है । महिमाशाली जीवन : --- जगत् में एक से एक बढ़कर दूसरा मनुष्य मिल ही जाता है । कोई रूप में, कोई गुण में कोई जाति में अथवा कुल में, कोई बुद्धि अथवा शास्त्र में, कोई कला अथवा कौशल में, कोई ऋद्धि अथवा समृद्धि में तथा कोई लाभ अथवा ख्याति में - इन सब का गर्व, मद आदि यदि कोई उतारने वाला है तो वह श्री तीर्थं - कर देवों का जीवन ही है। क्रोध, रोष, ईर्ष्या अथवा सहिष्णुता, माया अथवा दंभ, अनीति अथवा अनाचारादि दोषों को रोकने की इस जगत् में सत्य प्रेरणा यदि किसी भी स्थान से प्राप्त हो सकती है तो वह भी श्री तीर्थंकर देवों के जीवन से ही प्राप्त हो सकती है । श्री तीर्थंकर देवों का प्रदर्श जीवन दूसरों में रहने वाले सभी दोषों और विकारों को प्रकट में लाता है तथा योग्य श्रात्मानों के उन दोषों को बढ़ने से रोकता है तथा उनका नाश भी कर देता है । इस जगत् में जो कोई अच्छाई, उज्जवलता अथवा पवित्रता आदि दिखाई देती है वह सब प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से तीर्थंकर देवों के प्रति उज्जवल तथा पवित्र जीवन का ही प्रभाव है • उन उद्धारकों के जीवन की भव्यता असंख्य आत्माओं को अपने विकास स्थान पर से आगे बढ़ने में अनायास रूप से एक सबल निमित्त रूप सिद्ध हुए बिना नहीं रहती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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