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________________ ४४ फिर भी १५ वीं शताब्दी तक प्रार्य प्रजा पर मुस्लिम संस्कृति का थोड़ा भी प्रभाव नहीं पड़ा । विक्रम की १३ वीं शताब्दी में दिल्ली पर मुस्लिम सत्ता का शासन हुआ । सत्ता के मद में आकर वे अनेक मंदिर एवं अज्ञान लोगों को हिन्दू धर्म से भ्रष्ट करने लगे फिर भी उन्हें पूर्ण सफलता नहीं मिली। थोड़े बहुत जो विधर्मी बनें वे भी अधिकांश स्वार्थी और धर्म से अनभिज्ञ लोग थे । ऐसी विकट स्थिति में भी भारतीय धर्मवीरों पर अनार्य संस्कृति का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा । विक्रम की १४ वीं सदी में दिल्ली, मालवा और गुजरात की भूमि पर मुस्लिमों की सत्ता का आधिपत्य हुआ और उन्होंने वहाँ की शिल्पकला और मंदिरों का नाश किया, विधर्मी नहीं बनने वालों की सम्पत्ति को लटा तथा उन्हें प्रारण दण्ड दिया । तब तक भी धर्मवीरों पर अनार्य संस्कृति का जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा पर इसके विपरीत प्रतिस्पर्धा के कारण धर्म एवं मूर्ति पूजा पर का विश्वास और भक्तिभाव बढ़ता ही गया । शिलालेखों पर से यह ज्ञात होता है कि ऐसी विकट परिस्थिति के समय में भी पुराने मंदिरों के नाश की अपेक्षा नये मंदिर अधिक संख्या में बने । उदाहरण स्वरूप वि. सं. १३६ε में मुसलमानों ने शत्रुंजय के सभी मंदिरों का नाश किया और १३७१ में श्रेष्ठी समरसिंह ने करोड़ों का द्रव्य खर्च करके पुन: शत्रु जय पर स्वर्गविमान समान मंदिरों का निर्माण करवा लिया । विक्रम की १६ वीं सदी भारतवर्ष के लिये महादुःख एवं भयंकर कलंक रूप साबित हुई । अनार्य संस्कृति का दोषपूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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