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४३ इतिहास भी जानना आवश्यक है । विश्वस्त तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि विक्रम की ७ वीं शताब्दी पूर्व समस्त संसार मूर्ति पूजा का उपासक था। सर्वप्रथम लगभग १३०० से १४०० वर्ष पूर्व मूर्ति पूजा के विरुद्ध आवाज पैगम्बर महम्मद ने अरबिस्तान में उठाई थी क्योंकि उस देश में मूर्ति पूजा के नाम पर अत्याचार बहुत बढ़ गये थे। सिर के बाल बढ़ जाने से सिर को ही काट डालने की क्रिया जितनी अव्यवहारिक है उतना ही अव्यवहारिक था अत्याचार का विरोध करने के बजाय मूर्ति पूजा का विरोध करना । पैगम्बर महम्मद ने यह विरोध किसी भी प्रमाण के आधार पर नहीं पर तलवार के बल पर किया। __ केवल प्रार्य प्रजा में ही नहीं पर पाश्चात्य देशों में भी मूर्ति पूजा का बहुत प्रचार था, ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध हैं । आस्ट्रेलिया में भगवान् महावीर की मूर्ति, अमेरिका में ताम्रमय सिद्धचक्र का गट्टा, मंगोलिया में अनेक भग्न मूर्तियों के अवशेष तथा मक्का मदीना में जैन मंदिर (जो हाल ही में वहाँ से बदल दिया गया है) आदि मूर्ति पूजा के प्रमाण हैं।
व्यक्तिगत रूप से कोई मूर्ति पूजा को नहीं माने, यह अलग बात है परंतु देशाटन करने वालों की जानकारी से यह बात छिपी हुई नहीं है कि आज भी जगत् में ऐसा प्रदेश खोजने पर भी नहीं मिल सकता कि जहाँ मूर्ति पूजा का प्रचार न हो।
मुस्लिम मत् की उत्पत्ति के बाद मुसलमानों ने भारतवर्ष पर कई आक्रमण किये और धर्मांधता के कारण इस देश के आदर्श मंदिर-मूर्तियों को तथा शिल्प-कलाओं को नष्ट-भ्रष्ट किया।
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