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नहीं कर सकता। किसी भी निराकार वस्तु की उपासना मूर्ति के अभाव में असम्भव है, इसको सभी धर्मावलम्बी मानते हैं। अतः ईश्वर के प्रति श्रद्धा, भक्ति तथा उसके अस्तित्व का विश्वास बनाये रखने के लिये मूर्ति पूजा की परम आवश्यकता है। गुण पूजा के लिये भी आकार जरूरी है :
यहाँ कोई ऐसा प्रश्न करे यह सम्भव है कि.. "ईश्वर की उपासना हेतु जड़ मूर्ति का आलंबन लेने की अपेक्षा उनके स्वयं के गुणों का आलंबन लेना क्या बुरा है ?"
परन्तु यह प्रश्न कम समझ का है। ईश्वर जिस प्रकार निराकार है उसी प्रकार ईश्वर के गुण भी निराकार हैं। ईश्वर तथा उसके गुणों का जब कोई आकार नहीं तो अल्प बुद्धि जीव उसकी उपासना किस प्रकार कर सकते हैं ? अल्पज्ञ जीवों को उपासना में लीन करने के लिये साकार, इंद्रियगोचर. तथा दृश्य पदार्थों की आवश्यकता रहेगी ही।
फिर किसी का ऐसा भी कहना संभव है कि
हम ईश्वर अथवा ईश्वर के निराकार गुणों की अपने मनमंदिर में मानसिक कल्पना द्वारा उपसना कर लेंगे। ऐसी 'स्थिति में पाषाणीय मंदिर-मूर्ति की क्या आवश्यकता है ? पर ऐसा कहना भी अज्ञानता है । मनोमंदिर में निराकार ईश्वर की कल्पना भी साकार ही बनने वाली है जैसे कि अष्ट महाप्रतिहार्य से विभूषित, केवलज्ञानादि अनंत चतुष्टय से युक्त, समवसरण में बिराजमान भगवान् जिनेश्वर महाराज की धर्म देशना समय की अवस्था। इस अवस्था की कल्पना निराकार नहीं पर साकार है।
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