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प्रतिमा-पूजन प्रतिमा- पूजन की प्राचीनता अनादिकालीन आकार :
समस्त विश्व मूर्तिमान पदार्थों का समूह रूप है। जितना प्राचीन विश्व है उतनी ही प्राचीन मूर्ति, प्राकार तथा उनकी पूजा आदि है । जैन सिद्धान्त के अनुसार समस्त लोक षड्द्रव्यों से भरा हुआ है। इन छः द्रव्यों में पाँच अमूर्त हैं व एक मूर्त । इन अमूर्त द्रव्यों का भी कोई आकार विशेष माना गया है । यावत् पालोकाकाश अथवा जहाँ केवल एक आकाश द्रव्य ही है उसको भी गोले जैसे आकार वाला माना गया है। ___जैसे अमूर्त द्रव्यों का आकार माना है वैसे ही अमूर्त द्रव्यों के ज्ञान को भी आकारयुक्त माना गया है । अमूर्त द्रव्यों की जानकारी भी मूर्त द्रव्यों द्वारा ही होती है । इस प्रकार आकार एवम् मूर्ति को मानने का इतिहास किसी काल विशेष का नहीं पर विश्व के अस्तित्व तक के सर्वकाल के लिये सर्जित है।
मूर्ति का विश्वव्यापक सिद्धान्त :
मूर्ति, प्राकृति, प्रतिमा, प्रतिबिंब, आकार, प्लान, नक्शा, चित्र, फोटो-ये सभी एक ही अर्थ के सूचक शब्द हैं। किसी न किसी प्रकार से इन आकारों को आदर दिये बिना किसी का काम नहीं चलता। एक बालक से लगाकर बड़े ज्ञानी तक
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