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प्रभु पूजन के शुभ अध्यवसाय की तीव्रता से आयुष्यकर्म का क्षय होता है। ... श्री जिनेश्वरदेव के नामादि लेने से नाम कर्म का क्षय होता है । ___ श्री जिनेश्वरदेव का वंदन-पूजन आदि करने से नीच गोत्र कर्म का क्षय होता है तथा श्री जिनेश्वरदेव की पूजा में शक्ति, समय तथा अन्य द्रव्य का सदुपयोग करने से वीर्यांतरायादि कर्म का क्षय होता है।
इस प्रकार जिन पूजा में पुण्यबंध, देश से या सर्व से कर्म निर्जरा तथा परम्परा से शाश्वत् सुखस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति तक के सभी कार्य एक साथ सिद्ध होते हैं । श्री जिन पूजा जैसा आसान से अासान, बालक से लेकर वृद्ध तक सभी जिसे कर सकते हैं ऐसा तथा अनुपम लाभकारी अन्य कोई कार्य लोक-परलोक के मार्ग में दिखाई देना सम्भव नहीं है । उसके प्रति तनिक भी वक्र दृष्टि धारण करना अपने स्वयं के कल्याण के प्रति वक्र दृष्टि धारण करने के समान है। अपने तथा औरों के कल्याण के अभिलाषी लोगों को श्री जिन पूजादि अनुष्ठान में स्वयं सम्मिलित होकर अन्य को सम्मिलित करना तथा अपने-पराये का पारमार्थिक कल्याण साधना, यही सच्ची उन्नति का उत्तम मार्ग है।
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