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________________ २६ कैसे तत्पर हो सकेगा ? परमात्मा की आराधना हेतु, परिग्रह की ममता कम करने के लिये अथवा गृहस्थावस्था में उदारता आदि सद्गुणों की सर्वोत्कृष्ट फल प्राप्ति तथा श्री जिन भक्ति के लिये मंदिरों एवं मूर्तियों से बढ़कर सुंदर स्थान जगत् भर में अन्यत्र कहाँ मिल सकता है ? परमात्मा के शासन का अपने ऊपर अतुल भावोपकार हैऐसा समझने वाले पुण्यात्मा परमात्मपरायण बनने के लिये मन्दिर एवं मूर्ति पर होने वाले अधिक से अधिक धन व्यय को कम ही मानते हैं तथा इससे विपरीत दिशा में होने वाले धन व्यय को अनर्थकारी एवं सांसारिक बंधनों में जकड़ने वाले समझते हैं । प्रभु शासन को प्राप्त गृहस्थ तो ऐसा मानते हैं कि जिन भक्ति आदि में उपयोग में नहीं आने वाला द्रव्य प्रायःस्वयं की तथा स्वयं के वंशजों की परिग्रह भावना का पोषक होता है । केवल इतना ही नहीं पर वह तो उनको तथा उनकी संतति को विलासिता के मार्ग पर आगे बढ़ाकर उन्हें अधोगति में धकेलने वाला बनता है । मन्दिरों श्रादि पर किये हुए धन व्यय से होने वाले लाभ : जहाँ मन्दिर और मूर्ति पर किया गया धन व्यय धार्मिक आत्मानों के अधिकार क्षेत्र में जाकर किसी समुदाय की सम्पत्ति बनता है वहाँ पुत्र, पौत्रों आदि को दी हुई सम्पत्ति अधिकांशतः ऐसे लोगों के स्वामित्व में चली जाती है जो धर्म परायण नहीं हैं तथा उस पर अधिकार भी ऐसे ही वर्ग का बन जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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