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साधु समागम की सुलभता का यदि कोई प्रधान साधन है तो वह जिनेश्वर देव की भक्ति के लिये बने पर्याप्त सुन्दर मन्दिर ही हैं। इन मन्दिरों के अभाव में साधुओं का आगमन प्रायः असंभव-सा बन जाता है तथा साधु समागम बिना सुपात्र दान, श्री जिनवचन का श्रवण तथा संसार से छुटकारा पाने के लिये अत्यंत उपयोगी सम्यग्दर्शन, देशविरति तथा सर्वविरति आदि गुणों के लाभ से हमें वंचित रहना पड़ता है 1 केवल इतना ही नहीं पर सहधर्मी के दर्शन भी दुर्लभ बन जाते हैं।
परिणाम यह होता है कि ऐसी स्थिति में सार्मिक की भक्ति आदि सम्यकत्व को निर्मल बनाने वाले आचरण का पालन भी अशक्य बन जाता है । मन्दिरों से सर्वदा लाभ ही होता है : ____श्री जैन शासन में साधुओं का किसी एक स्थान पर नित्य-वास निषिद्ध है क्योंकि श्रावकों के साथ उनका स्नेह बढ़ता है तथा ममत्व की प्रवृत्ति का पोषण होता है । परिणामस्वरूप धर्म भावना की वृद्धि के बदले हानि ही होती है । परंतु श्री वीतराग परमात्मा की पावन प्रतिमा से अधिष्ठित हुए मंदिर के संबंध में ऐसा कुछ नहीं बनता। इस स्थान पर सर्व साधारण समान भक्ति भाव से सदा-सर्वदा आ सकते हैं।
श्री जिन मन्दिर किसी भी वर्ग विशेष के पक्षपात अथवा अनुराग का कारण नहीं बनता; अतः वह हमेशा समान रूप से सभी की भावनाओं की अभिवृद्धि का स्थान बना रहता है । सर्वगुण सम्पन्न परमात्मा की अध्यक्षता वाले जिन मन्दिर के
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