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________________ २६४ सभी के जन्म-मरण के दुःखों का वह नाश नहीं करता। फिर भी अनुभवी लोग जानते हैं कि यही ओम्कार शब्द उसके विधि पूर्वक किये गये जाप और ध्यान से ब्रह्म का साक्षात्कार करवाता है। अज्ञानी गँवार को ओम्कार ('श्रो प्रो' ऐसे शब्द से) पेट में शूल उठने की भ्रान्ति; पैदा करने वाला होता है जबकि ज्ञानी के मन में परमात्मा अथवा ब्रह्म के स्वरूप का बोध करवाने के लिये, आज तक के खोजे हुए सभी शब्दों में, सर्वोपरि पद को भोगता है। प्रत्येक शास्त्र और मन्त्रों में उसका प्रमुख स्थान है तथा प्रारंभ में उसीकी स्थापना की जाती है । 'आकारवाली मूर्ति निराकार का बोध करवाने में असमर्थ हैं, ऐसा मानने वाले ओम्कार का जाप नहीं कर सकते । परन्तु जो अक्षराकार ओम्कार परमात्मा का बोध करवा सकता है तो परमात्मा का बोध कराने वाली अन्य प्राकृतियों और मूर्तियों को निरर्थक अथवा हानिकारक नहीं कहा जा सकता। प्रणव का चिंतन परमात्मा का साक्षात्कार करा सकता है और मूर्ति नहीं करा सकती, इसके लिये कोई भी प्रमाण नहीं है ।। ___ "मूर्ति परमेश्वर है," ऐसा मूर्ति पूजक नहीं मानते हैं परन्तु मूर्तिपूजन परमेश्वर की उपासना तथा उनका ज्ञान प्राप्त करने का एक श्रेष्ठ साधन है, ऐसा मानते हैं। ... मूर्तिपूजक पत्थर, धातु, लकड़ी अथवा मिट्टी अथवा उनकी विशेष प्रकार की घढ़ी हुई प्राकृति को ही ईश्वर नहीं मान लेते। पत्थर, धातु, लकड़ी अथवा मिट्टी को ही यदि वे ईश्वर मानते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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