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२६३ स्थूल जगत् में जो नियम हैं वे ही नियम सूक्ष्म जगत् में भी हैं। निराकार शक्ति का अनुभव करने की इच्छा रखने वाला यदि साकार मूर्ति द्वारा प्रयत्न करे, तभी वह सफल होता है ।
निराकार आत्मा का अनुभव, साकार देह के बिना नहीं हो सकता, वैसे ही निराकार ज्ञान भी साकार शरीर और उसके हाथ, पैर, जीभ आदि अवयवों के बिना प्रगट नहीं किया जा सकता । पुस्तक आदि आकार वाली मूर्तियों के बिना निराकार सिद्धान्तों के प्रसारण का अन्य कोई भी मार्ग आज तक नहीं खोजा जा सका है।
इस प्रकार कोई भी निराकार द्रव्य, साकार द्रव्य की सहाय बिना जब बुद्धि में नहीं उतर सकता, तो सभी रहस्यों के रहस्य, अत्यंत निगूढ और निराकार परमात्मा, साकार वस्तु के प्रालंबन लिये बिना बुद्धि में उतर जाय, क्या यह संभव है ?
प्रणव अर्थात् ओम्कार ब्रह्म का वाचक है, ऐसा सभी शास्त्र स्वीकार करते हैं । उसाका जाप, भावन और ध्यान करने से ब्रह्म का ज्ञान होता है। अब इस प्रोम् कार और उसके ब्रह्म में क्या समानता है ?
ब्रह्म चिदानन्द स्वरूप है और उसके अनुभव से मनुष्य, जन्म, जरा तथा मरण के कष्ट से मुक्ति पा जाता है जबकि प्रणव अर्थात् ओम्कार उत्पत्ति एवं विनाश के स्वभाववाला तथा जड़ है । कागज के टुकड़े पर लिखा हुमा वह प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान अथवा आनंद देने वाला नहीं होता तथा उसको देने वाले
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