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को देने में किया गया प्रयत्न सफल होता भी दिखाई देता है, तो फिर निराकार वस्तु का ज्ञान देने के लिये उसकी मूर्ति बनाने का प्रयत्न गलत और निष्फल है, ऐसा कैसे कहा जा सकता है ? आकार वाली वस्तु का ज्ञान देने का साधन जैसे मूर्ति है, वैसे ही निराकार वस्तु का भी ज्ञान देने का साधन मूर्ति ही है । __ मूर्तिपूजा का खंडन करने वाले अपने आकार रहित विचारों को, दूसरों को समझाने के लिये मूर्ति का ही आश्रय लेते हैं। उनकी सारी पुस्तकें निराकार विचारों को समझाने वाली मूर्तियाँ ही हैं। दो-चार अक्षरों वाले नाम में भी, नामवाले से कुछ अंश में भी समानता हो, ऐसा क्या है ? 'दयानंद'ऐसे चार अक्षर वाले नाम में 'दयानंद सरस्वती' के भगीरथ प्रयत्न का, अविरत उत्साह का अथवा अपूर्व विद्वत्ता की जानकारी कराने वाला ऐसा क्या है ? फिर भी दो चार अक्षरों के समुदाय से बनी हुई अक्षर मूर्ति को देखकर उससे कितने भक्तों का हृदय अपूर्व भक्ति रस से नहीं भर जाता है ?
विचार जैसी निराकार वस्तु का, दूसरों को बोध करवाने के लिये टेढ़े मेढे व आड़े-तिरछे अक्षरों अथवा उनकी प्राकृतियाँ, कि जो, विचारों के स्वरूप के साथ लेशमात्र भी समान नहीं हैं, का नित्य उपयोग करते हुए भी मूर्तिपूजा का खंडन करने वाले दया पात्र लोग, अपने आपको किस प्रकार बुद्धिमान कह सकते हैं ? ___ अफ्रिका के 'हन्शियों के सामने आगम शास्त्रों को रखो तो उन्हें वे कीड़े मकोड़े जैसी टेढी मेढी लकीरों के समान ही लगेंगे । जगत् के विश्व विख्यात पुस्तकालयों में कुत्ते बिल्लियों क छोड़ दिया जाय तो उनको ज्ञान के भंडार रूप महा मूल्य
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