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२६० को मालूम नहीं हुआ, जिनमें उनकी विद्वत्ता और सामर्थ्य का लाखवाँ हिस्सा भी नहीं है। केवल इतनी सी बात से उनका रहस्य नष्ट नहीं हो जाता। ज्ञान स्वरूप परमात्मा, संयमी पुरुषों को ही प्रत्यक्ष होते हैं। उनकी मूर्ति की स्थापना और उनका ध्यान पूजन, सभी संयमी पुरुषों से कराया हुआ होता है और इसलिये वह सत्य है।
कितने ही कहते हैं कि-'परमेश्वर निराकार है, उसको मू ति कैसे हो सकती है ?' आकार वाले की ही मूर्ति हो सकती है और निराकार की नहीं, ऐसा कहना भी गलत है । 'निराकार की मूर्ति नहीं हो सकती', विवाद के लिये एक बार ऐसा मान भी लिया जाए तो भी आकार वाले की मति हो सकती है, यह किस प्रकार सिद्ध होता है ? गाय, भैंस अथवा घोड़े के चित्र असली घोड़े, गाय अथवा भैंस से किस प्रकार मिलते हैं ? वास्तविक घोड़ा तीन-चार हाथ ऊँचा और चार-पाँच हाथ लम्बा होता है जबकि चित्र का घोड़ा कई बार दो-तीन इंच भी लम्बा-चौड़ा नहीं होता। असली घोड़ा हिनहिनाता है, घास खाता है, पानी पीता है, मनुष्य को अपने ऊपर बिठाकर कई मील तक ले जाता है; चित्र का घोड़ा इनमें से कुछ भी नहीं करता। असली घोड़े के साथ चित्र के घोड़े की तुलना की जाय, ऐसी उसमें एक भी बात नहीं होती।
आकार वाली वस्तु की भी इस प्रकार सच्ची मूर्ति बनाना अशक्य है तो निराकार की मूर्ति बनाना अशक्य हो इसमें कहने की क्या बात है ? किसी भी अंश में समानता न हो, ऐसी मूर्तियां और चित्र बनाकर उनका ज्ञान देने में प्राता है और उस ज्ञान
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