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________________ २५० पूर्वाग्रह के अधीन होकर अपनी इच्छानुसार खंडन करने लग जाते हैं । जिस बात का वे खंडन करते हैं, उसे पूरा सोचते भी नहीं । वह खंडनीय है अथवा नहीं, इसको भी जाँच नहीं करते । किसी प्रागेवान ने खंडन किया, दूसरे आँख मूँदकर उसका अनुसरण करते हैं व अंधों को सेना की तरह एक के बाद एक खड्ड े में गिरते जाते हैं, स्वयं हित के मार्ग से भ्रष्ट होने के साथ साथ अनेकों को भी भ्रष्ट करते हैं । पेट भरने का उद्यम सीखने में ही जिन्होंने जीवन का बड़ा भाग बीता दिया हो. वे परमेश्वर की उपासना और भक्ति के लिये अत्यन्त आवश्यक ऐसी भगवान् की मूर्ति, मन्दिर और उसकी पूजा के लिये मनचाही बातें करें तो उस पर बुद्धिमान लोगों को जरा भी ध्यान नहीं देना चाहिये । 'मूर्ति पूजन पूर्व कल्याण को साधने वाला है', ऐसा संगमी पुरुष शास्त्रों में फरमाते हैं । दूसरों को यह बात समझ में नहीं प्रावे तो इसमें उनकी अपरिपक्व बुद्धि का ही दोष समझना चाहिये । शास्त्रों का रहस्य समझने के लिये बुद्धि को सूक्ष्म बनाने की आवश्यकता है । किसी को बिजली में कुछ दैववत मालूम न होता हो तो वह भले ही ऐसा म'ने परन्तु 'एडीसन' जैसे विद्वान् को बिजली में जो अनन्त चमत्कारों का ज्ञान होने से तो उसकी श्रवगणना नहीं कर सकते है । 'एडोसन' को मूर्ख अथवा गप्पी कहने वाला स्वयं अपनी ही मूर्खता प्रकट करता है । वैसे ही हजारों विद्वानों को मूर्ति का जो रहस्य ज्ञात हुआ, वह इन लोगों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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