SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० वत तेर एकोतेर वरसे, समरोशा रंग सेठ, उद्धार पंदरमो शत्रुजे कीधो, अगीयार लाख द्रव्य खरच्या, हो० कुमति !०८ संवत पंदर सत्तासी वरसे, बादरशाह ने वारे; उद्धार सोलमो शेत्रुजे कीधो, करमशाहे जश लीधो. ___ हो कुमति ! ०६ ए जिन प्रतिमा जिनवर सरखी, पूजे त्रिविध तुमे प्रारणी; जिन प्रतिमामां संदेह न राखो, वाचक जसनी वाणी हो कुमति ! ०१० श्री जिन प्रतिमा - स्थापन - स्वाध्याय जेम जिन प्रतिमा वंदन दीसे, समकित ने अलावे; अंगोपांग प्रकट प्ररथ ए, मूरख मनमा नावे रे. .कुमति ! काँ प्रतिमा उथापी ? ०१ एम तें शुभ मति कापी रे-कुमति ! कां प्रतिमा उथापी ? मारग लोपे पापी रे, कुमति ! कां प्रतिमा लथापी? एह प्ररथ अखंड अधिकारे, जुप्रो उपांग उववाई; ए समकितनो मारग मरडी, कहे दया शी भाई रे. . कुमति ! ०२ समकित विण सुर दुरगति पामे, अरस विरस पाहारे; जुप्रो जमाली दयाए ने तरीप्रो, हुमो बहुल संसारी. कुमति ! ०३ चारण मुनि जिन प्रतिमा वंदे, भाखिऊं भगवई अंगे; चैत्य साखि आलोयण भाखे, व्यवहारे मन रंगे. कुमति ! ०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy