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कुमति - लता लता - उन्मीलन
-यानी
श्री जिनबिंब - स्थापन -स्तवन
भरतादिके उद्धारज कीधो, शत्रु जय मोझार; सोनाणां जे देशं कराव्यां, रत्नतरणाँ बिंब थाप्यां, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी १ अ जिनवचने थापी, १ वीर पछे बसे नेत्रु वरसे, संप्रति राय सुजाण, -सवा लाख प्रासाद कराव्या, सवा क्रोड बिंब थाप्यां,
हो कुमति ! २ द्रौपदीए जिन प्रतिमा पूजी, सूत्रमां साख ठराणी; छट्ट अंगे ते वीरे भाख्यु, गणधर पूरे साखी
हो कुमति !० ३
संवत नवसेंताणु वरसे, विमल मंत्रीश्वर जेह; आबु तरणां जेणे दहेरां करात्र्या, बे हजार बिंब थाप्यां,
संवत अगियार नवाणु वरसे, राजा कुमारपाल; पांच हजार प्रासाद कराव्या, सात हजार बिंब थाप्यां,
हो कुमति !० ४
संवत बार पंचाणु वरसे, वस्तुपाल तेजपाल, 'पाँच हजार प्रासाद कराव्या, अगीयार हजार बिब थाप्यां,
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हो कुमति !० ५
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संवत बार बोहोंतेर वरसे, संघवी धन्नो जेह; शरणकपुर जेणे देरां कराव्यां, क्रोड नवाणु द्रव्य खरच्यां;
हो कुमति !० ६
हो कुमति !० ७
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