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________________ २४६ प्रतिमा-नति फल काऊस्सग्गे, अावस्यकमां भाख्यु; चैत्य अर्थ वेयावच्च मुनि ने, दसमे अंगे दाख्युरे. कुमति ! • ५. सूरियाम सूरि प्रतिमा पूजी, रायपसेणी मांहि; समकित विणुभवजलमां पडतां, दया न साहे बांहि रे. कुमति ! ०६द्रौपदीये जिन-प्रतिमा पूजी, छठे अंगे वाचे; तो सुएक दया पोकारी, आणा विरण तुमाचे रे ! । कुमति !०७एक जिन प्रतिमा वंदन द्वेषे, सूत्र घरणां तु लोपे ! नंदी मां जे आगम संख्या, पापमती कां गोपे ? कुमति !० ८ः जिन पूजा फलदानादिक सम, महानिशीथे लहिये; अंध परंपर कुमतिवासना, तो किम मनमां वहिये रे ? __ कुमति !०E सिद्धारथ राय जिन पूज्या, कल्पसूत्रमा देखो; प्राणा शुद्ध दया मन धरतां, मिले सूत्रनां लेखो रे ! कुमति !० १०. थावर हिंसा जिन-पूजामां, जो तु देखी धूजे; तो पापी ते दूर देश थी, जे तुज प्रावी पूजे रे ! कुमति !० ११ पडिकमणे मुनि दान विहारे, हिंसा दोष विशेष ; लाभालाभ विचारी जोतां, प्रतिमामां स्यो द्वष रे ? .. कुमति !० १२: टीका चूणि भाष्य उवेख्यां, ऊवेखी नियुक्ति; प्रतिमा कारण सूत्र उवेख्यां, दूर रही तुझ मुगति रे ! कुमति !० १३.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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