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२३६ उत्तर-ज्ञान के बिना सत्य-असत्य का पता नहीं चलता। ज्ञान के बिना जगत् का स्वरूप समझ में नहीं आता। ज्ञान के प्रभाव में देव, गुरु और धर्म के लक्षणों की पहचान नहीं होती। ज्ञान के बिना धर्म क्रियायें अंधक्रियाओं की भाँति अल्प फल देने वाली होती हैं। शुद्ध ज्ञान रहित क्रिया तो केवल अज्ञान कष्ट है । उससे उच्चगति प्राप्त नहीं की जा सकती क्योंकि जमाली, गोशाला आदि ने क्रिया पूरी पाली। उनके समान दया कौन पाल सकता था? फिर भी भगवान् की आज्ञा विरुद्ध प्रवृत्ति होने से वे संसार का क्षय नहीं कर सके ।
जो एकांत क्रिया से बड़ा स्वांग रचकर, गुरु बनकर, संसार को ठगते हैं, उन्हें सोचना चाहिये कि जमाली आदि की करणी के सामने उनकी क्रिया किस अनुपात में है ? मिथ्यात्व रूप से की हुई क्रिया के द्वारा देवगति आदि के सुख भले ही मिले, पर उससे संसार-भ्रमणता कम नहीं होती। जंगल में रहने वाले, हाथ में ही भोजन करने वाले, महान् कष्टों को सहन करने वाले, नग्न घूमने वाले, व्रतधारी और तपस्वी मिथ्यात्वी ऋषिमुनियों के बराबर का वर्तमान में कोई लक्षांश भाग की क्रिया पालन करते हुए दिखाई नहीं देता, तो केवल क्रिया पक्षवालों को तो ऐसे ही गुरु को धारण करना चाहिये।
शास्त्रकार कहते हैं कि, "करोड़ों वर्षों तक पंचाग्नि तप-जप करके अज्ञानी क्रियावादी, प्रात्मा की जो शुद्धि नहीं कर सकता, उतनी आत्म शुद्धि ज्ञानी मनुष्य एक श्वासोश्वास मात्र में करता है।"
श्री भगवती सत्र में फरमाया है कि-"क्रिया से भ्रष्ट हुआ ज्ञानी प्रांशिक विराधक है और सर्व से प्राराधक है; जबकि
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