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________________ २३५ "इस नाटक की भक्ति करके वे एकावतारीपन को प्राप्त हुई हैं" कितने ही कहते हैं कि - मृगापृच्छा में भी साधु यदि मौन धारण करे तो वहाँ क्या अर्थ समझना ? मृगापृच्छा में साधु को मौन रहने का कहीं भी नहीं कहा है । श्री श्राचारांग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध में कहा है कि "जा वा नो जाग वदेज्जा" अर्थात् - साधु जानता हो तो भी कहे कि मैं नहीं जानता हूँ, अथवा मैंने नहीं देखा, ऐसा ही कहे । श्री भगवती सूत्र के आठवें शतक के पहले उद्दस में लिखा है कि "सच्च मणप्पओगपरिणय मोसवयाप्य श्रोगपरिणया" अर्थात् - मृगापृच्छादि में मन में तो सत्य है और वचन में मिया है । श्री सूयगडांग सूत्र के आठवें अध्ययन में भगवान् फरमाते हैं कि "सादियां मुसं बूया, एस घम्मे वुसीमनो" मृगा पृच्छादि बिना असत्य न बोले, यह संयमियों का धर्म है । अर्थात् उस समय असत्य भाषा बोले, ऐसी प्रभु की आज्ञा है । प्रश्न ६८ - ज्ञान की महत्ता विशेष है या क्रिया की ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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