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बोच में मृत्यु का आ जाना कितना बड़ा अनिष्ट गिना जाता है ? जरा सोचो कि
किसी गाँव की तुच्छ झोंपड़ी में रहने वाला गरीब मनुष्य, “परदेश जाकर करोड़ों रुपये कमा कर घर लौट आया। वह क्या इस छोटी झोपड़ी में अपनो अपार दौलत का भोग कर सकेगा? कभी नहीं। उस धन का भोग करने के लिये भव्य महल-हवेली उस स्थान पर बनवानी पड़ेगी। ऐसा करने में उस पुरानी झोंपड़ी का अवश्य नाश करना ही पड़ेगा।
इस प्रकार झोंपड़ी जैसा तुच्छ मनुष्य का यह शरीर है और करोड़ों की दौलत रूपी उस पूजा का महापुण्य है। जैसे झोंपड़ी में बैठे २ वह पुरुष अपार धन का भोग नहीं कर सकता, वैसे ही इस क्षणभंगुर, रोगी, मानव-देह में रहा हुमा जीव महापुण्य का फल नहीं भोग सकता । वह पुरुष जैसे झोंपड़ो छोड़ कर आलीशान महल बनाकर वैभव की सामग्री जुटाता है, वैसे ही जीव भी अपने अल्पकालीन झोंपड़ी-रूप शरीर को छोड़कर महल रूपी देव आदि के उत्तम शरीर को प्राप्त कर उसके द्वारा पुण्य का स्वाद दीर्घकाल तक भोगता है ।
____ जैसे बड़े परिश्रम से प्राप्त मूल्यवान् वस्तु लम्बे समय तक “भोगते रहने पर भी नष्ट नहीं होती, वैसे श्री जिन पूजादि शुभ कार्यों से उपाजित पुण्य भी अधिक समय तक भोगते रहने पर भी समाप्त नहीं होता। अतः किसी भी समय कोई उत्कृष्ट भाव आ जाय और पूजा से महापुण्य बँध जाय तो उसी अनुक्रम से उच्च गति में पहुँच जायेंगे, यावत् श्री तीर्थंकर गोत्र का का भी वंध जिन-पूजा से होता है।
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