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२३० राजा, इन्द्रदेवता प्रमुख की, की हुई सेवा तत्काल नहीं, पर समय माने पर ही फल देती है। मंत्र-जाप भी कोई हजार जाप से तो कोई लाख व कोई करोड़ जाप से सिद्ध होता है । रोगनिवारण के लिये की हुई दवा भी स्थिति पकने पर ही असर करती है। पारा सिद्ध करते बहुत समय लगता है । इस प्रकार सभी कार्य अपनी २ अवधि पूरी होने पर ही फल देते हैं।
__ इसी प्रकार इस भव में भाव सहित की हुई द्रव्य पूजा का महान् पुण्य भवांतर में भोगा जा सकता है तथा सामान्य पूजा का सामान्य पुण्य तो कदाचित इस जन्म में भी भोगा जा सकता है। उत्तम फल देने वाले कार्यों में ज्ञानी पुरुषों को उतावले या चिंतातुर नहीं होना चाहिये । चिंतामणि रत्न आदि से मिलने वाला फल पूजा के फल की तुलना में किसी गिनती में नहीं । वह तो तुच्छ फल को देने वाला है तथा वह परभव में नहीं पर इस मनुष्य भव में ही जो अधिकतर अल्प समय के लिये होता है, उसी में फल देता है। परन्तु पूजा से उपाजित पुण्य का फल बहुत बड़ा होने से अधिक समय में भोगने योग्य होता है। वह दीर्धकाल देवताओं के आयुष्य में ही हो सकता है । इसलिये वह महान् पुण्य, जीव को दूसरे जन्म में उत्पन्न होने के बाद ही उदय में आता है।
यदि इस भव में ही वह प्राप्त हो जाय तो मनुष्य की आयु सामान्य रूप से अल्प होने से तथा मनुष्य शरीर रोगी एवं शीघ्र नाशवान होने से उसे भोगते हुए मृत्यु हो जाने से वह पुण्य रूपी डोरी बीच में ही टूट जाती है तथा उस बोच मौत रूपी महादुाख भोगना पड़ता है जिसकी तुलना में अन्य कोई दुःख विशेष भयंकर नहीं। ऐसे बड़े पुण्य का फल भोगते हुए
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