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२२६ उनके वे पुद्गल उनकी निर्वाण भूमि में बिखरे हुए होते हैं । वहाँ अधिकतर अच्छे पुद्गलों का ही समूह होता है और वे अपने में प्रवेश कर जाते हैं। यद्यपि बहुत समय बीत गया है, फिर भी वे सभी पुद्गल नष्ट नहीं होते। । ऐसे पवित्र स्थान पर पुण्यवान स्त्री-पुरुषों के ऐसे निर्मल पुदगलों के स्पर्श से बुद्धि कितनी निर्मल होती होगी, इसका अनुमान अनुभव बिना नहीं लगाया जा सकता। हो सकता है, दुर्भागी मनुष्य को वहाँ अच्छे के बदले खराब पुद्गलों का स्पर्श हो जाय, तो यह उनके कर्म का ही दोष है । मुख्य रूप से तो वहाँ उत्तम पदगलों का ही सदभाव है। इस प्रकार घर की अपेक्षा तीर्थयात्रा में कई गुणा लाभ प्राप्त होता है और धर्मध्यान निर्विघ्न एवं सुगम बन जाता है ।
प्रश्न ६६-भगवान की पूजा-पूजक को हितकारी है फिर भी चिंतामणि रत्न की तरह उसका फल तुरन्त यहीं पर क्यों नहीं प्राप्त हो जाता?
उत्तर-इस विषय में दूर दृष्टि से विचार करने की जरूरत है । प्रत्येक वस्तु को जिस काल में फलने का होता है, वह उस काल में ही फलती है । कहावत है कि-"जल्दी में प्राम नहीं पकते" जैसे कि खेत में बीज बोने के बाद उसका समय पूर्ण होने पर ही अनाज पकता है, पहले नहीं।
गर्भस्थिति प्रायः नौ महीने बीतने के बाद ही प्रसूति होतो है। वनस्पति, फल, फूल भी एकदम नहीं पकते । चक्रवर्ती
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