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________________ २३२ प्रश्न ६७ -सूर्याभ देवता ने श्री महावीर भगवान् के पास नाटक करने को कहा तब प्रभु मौन क्यों रहे ? वह सावध कार्य था इसीलिये न ? उत्तर- उस समय सूर्याभदेव ने क्या कहा, उस विषय में श्री रायपसेणी सूत्र के नीचे के पाठ पर ध्यान दो। ___ "अहण्णं भंते ! देवाणुप्पियाणं भत्तिपुव्वयंगोयमाईणं समणाण निग्गंथाणं बत्तीसइबद्ध नचिहि उवदंसेमि" __ "हे भगवान् ! मैं आपके सामने भक्ति पूर्वक गौतमादि श्रवण निर्गन्थों को बत्तीस प्रकार का नाटक बताऊँगा।" . सूत्रकार तो 'भक्ति-पूर्वक" लिखते हैं, फिर भी उसको मन से-कल्पित रूप से सावध कह देना कितना अनुपयुक्त है ? साथ ही सूर्याभ ने प्रश्न के रूप में नहीं पूछा, बल्कि अपनी इच्छा प्रगट की है। ऐसी बातचीत में जवाब देने की जरूरत मना करते समय ही रहती है; स्वीकार करते समय नहीं। अगर सवाल के रूप में पूछा होता तो, सूर्याभ जैसा महा विवेकी भगवान् के जवाब के बिना कार्य का प्रारंभ न करता। जैसे कोई नौकर किसी कार्य के लिये आज्ञा पाने के लिए अपने स्वामी को प्रश्न करे, फिर भी आज्ञा के रूप में जवाब प्राप्त किये बिना वह नौकर यदि कार्य शुरू करदे तो वह महा अविवेकी और आज्ञा का उल्लंघन करने वाला ही गिना जायेगा। परम सम्यक्त्ववान् सूर्याभ को ऐसा कैसे माना जा सकता है ? भक्ति को इच्छा प्रगट करने के वाक्य में मौन रहने से, आज्ञा ही समझी. जाती है और मना करना हो तभी बोलने की आवश्यकता रहती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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