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श्री महावीर स्वामी के हस्तदीक्षित शिष्य, अवधिज्ञान को धारण करने वाले श्री धर्मदासगणी श्री उपदेशमाला प्रकरण में कहते हैं कि-श्रावक जिनराज के पांचों कल्याणकों के स्थान पर यात्रा के लिये जावे । स्थावर तीर्थ की यात्रा से अंत:करण की शुद्धि होती है।
श्री महाकल्प सूत्र में तीर्थयात्रा के उत्तम फल का वर्णन है। यद्यपि अपने रहने के स्थान पर भी मंदिर होते हैं, पर तीर्थयात्रा में उसकी अपेक्षा विशेष लाभ होता है क्योंकि घर पर तो व्यापार, रोजगार, सगे-संबंधी प्रादि की चिन्ताएँ रुकावट डालती हैं। पूरा दिन उसी के संकल्प विकल्प में रहने से धर्मध्यान में चित्त स्थिर नहीं रह सकता, परन्तु घर.छोड़ने के पश्चात् ये सब उपद्रव दूर हो जाते हैं तथा साथ में अन्य सार्मिक बंधु होने से उनके साथ धार्मिक चर्चा से मन प्रफुल्लित होता है। शास्त्र का ज्ञान मिलता है; मार्ग में अनेक गाँव व शहर पड़ते हैं, जहाँ उत्तम साधुजनों तथा सुज्ञ श्रावकों का सम्पर्क मिलने से नवीन शिक्षा तथा बोध की प्राप्ति होती है। __ तीर्थभूमि में ऐसे अनेक सज्जनों से मिलने का लाभ होता है तथा उनके समीप रहने से बहुत फायदा होता है। घर पर ऐसे महात्मा व उत्तम पुरुषों का समागम कदाचित् ही मिल पाता है और समयाभाव होने से उनसे विशेष लाभ भी नहीं लिया जा सकता।
तीर्थ भूमि पर श्री तीर्थंकर, श्री गणधर तथा अन्य उत्तमोतम व्यक्तियों का निर्वाण हुआ है अतः वे याद आते हैं और
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