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________________ २२६ सूत्र में फरमाया है। श्री गौतमस्वामीजी भी अष्टापद पर. गये थे। कर्मशत्रु को जीतने वाला, ऐसा जो शत्रुजय पर्वत है, वहां से अनंत जीव मोक्ष गये हैं, ऐसा श्री ज्ञाता सूत्र में कहा गया है। श्री आचारांग सूत्र में दूसरे श्रु तस्कंध में नीचे माफिक तीर्थभूमि बताई है "जम्माभिसेय-निक्खमण चरणुप्पायनिवाणे ।। दियलोअभवणमंदरनंदीसरभोमनयरेसु ॥१॥ अट्ठावयमुज्जिते गयग्गपयए व धम्मचक्के य ।। पासरहावत्तनगं चमरुपायं च वंदामि ॥२॥ "तीर्थकर देव के जन्माभिषेक की भूमि, दीक्षा लेने की भूमि, केवलज्ञान उत्पत्ति की भूमि, निर्वाण-भूमि, देवलोक के सिद्धायतन, भुवनपतियों के सिद्धायतन, नंदीश्वर द्वीप के सिद्धायतन, ज्योतिषी देवविमानों के सिद्धायतन, अष्टापद, गिरनार, गजपद तीर्थ, धर्मचक्र तीर्थ, श्री पार्श्वनाथ स्वामी के सर्वतीर्थ, जहाँ श्री महावीर स्वामी काऊसग्ग में रहे, वह तीर्थ, इन सबकी मैं वन्दना करता हूँ"। श्री भद्रबाहुस्वामी श्री आवश्यक नियुक्ति में फरमाते हैं, कि श्री तीर्थंकर देवों का जहाँ जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान, निर्वाण निचिश्त रूप से हुआ हो, उस भूमि के स्पर्श से सम्यक्त्व दृढ होता है। Jain Education International al For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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