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२२५ (१) श्री प्रश्न व्याकरण के आश्रव द्वार में चैत्य शब्द का अर्थ 'मूर्ति' किया है।
(२) श्री उववाई सूत्र में 'पुण्णभद्द चेइए होत्था'। यहाँ चैत्य का अर्थ मंदिर और मूर्ति कहा गया है ।
(३) श्री उववाई सूत्र में 'बहवे अरिहंत चेइयाइं ।' यहां भी मंदिर और मूर्ति का अर्थ कहा गया है।
(४) श्री भद्रबाहु स्वामी ने श्री व्यवहार सूत्र की चूलिका में द्रव्यलिंगी "चैत्य स्थापना" करने लग जायेंगे, वहां "मूर्ति की स्थापना" करने लग जायेंगे, ऐसा अर्थ किया गया है ।
(५) श्री ज्ञाता सूत्र, श्री उपासकदशांग सूत्र, श्री विपाक सूत्र में 'पुण्णभद्द चेइए।' कहकर पूर्णभद्रयक्ष की मूर्ति व मंदिर का अर्थ कहा गया है।
(६) अंतगडदशांग सूत्र में भी जहाँ यक्ष का चैत्य कहा गया है वहाँ उसका भावार्थ मंदिर या मूर्ति बताया है।
प्रश्न ६५-कौनसे सूत्र में तीर्थयात्रा का विधान हैं ? और उससे क्या लाभ होता है ?
उत्तर-तीर्थ दो प्रकार के हैं । (१) जंगम तीर्थ-यानी चतुविध संघ और (२) स्थावर तीर्थ-यानी श्री शत्रुजय, गिरनार, नंदीश्वर, अष्टापद, पाबू, सम्मेतशिखर आदि हैं-जिनकी यात्रा जंघाचारण मुनिवर भी करते हैं, ऐसा श्री भगवतीजी
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