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मानना पर वाच्य-वाचक सम्बन्ध को न मानना-यह अज्ञानता है । वाचक शब्द निश्चित रूप से वाच्य का बोध करवाता है. अतः इस सम्बन्ध का कोई भी बुद्धिमान् व्यक्ति इन्कार नहीं कर सकता है।
नाम-स्थापना के दो दो प्रकार :
नाम दो प्रकार के होते हैं, ठीक वैसे ही स्थापना भी दो प्रकार की होती है। घट पदार्थ का 'घड़ा' ऐसा नाम तथा घड़ा पदार्थ रहित शरीरादि अन्य पदार्थ का 'घट'-ऐसा नाम-इसी प्रकार घड़े पदार्थ का आकार वह भी स्थापना और घड़ाकार का चित्रादि में आलेखन वह भी घड़े की स्थापना।
मूल वस्तु के आकार अथवा मूल आकार की भिन्न वस्तुओं के आकार में कोई भिन्नता नहीं होती अतः दोनों को एक ही नाम से पुकारा जाता है और दोनों अपने स्थाप्य का समान बोध कराती हैं। हाथी घोड़ों के प्रत्यक्ष आकार अथवा उनके चित्र, राजा रानी के प्रत्यक्ष आकार अथवा उनके चित्रित आकार हाथी घोड़े अथवा राजा रानी का ही बोध कराते हैं न कि किसी अन्य पदार्थ का । मूल वस्तु जिस प्रकार स्थापना से पहचानी जाती है, इसी तरह स्थापना वस्तु भी आकार से ही पहचानी जाती है। दोनों की पहचान आकार से होने के कारण दोनों द्वारा बोध कराने का कार्य समान रूप से ही होता है ।
उपास्य देव और उनकी स्थापना-दोनों की पहचान आकार से होती है। इसलिए ये दोनों एक ही नाम से सम्बोधित
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