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२२३ उत्तर-'चैत्य' का अर्थ 'साधु' या 'ज्ञान' किसी प्रकार नहीं हो सकता तथा शास्त्र के संबंध में वह अर्थ उपयुक्त भी नहीं । साधु की जगह तमाम सूत्रों में
"साहु वा साहुणी वा" "भिक्खु वा भिक्खुणी वा" ऐसा कहा है, पर"चैत्यं वा चैत्यानि वा।"
ऐसा तो कहीं भी नहीं कहा है तथा 'भगवान् श्री महावीर स्वामी के चौदह हजार साधु थे', ऐसा कहा है, पर 'चौदह हजार चैत्य थे', ऐसा नहीं कहा । इस प्रकार अन्य सभी तीर्थकरों, गणधरों, प्राचार्यों आदि के 'इतने हजार साधु थे', ऐसा कहा है पर 'चैत्य थे' ऐसा शब्द किसी जगह नहीं है।
तथा चैत्य शब्द का अर्थ 'साधु' करें तो साध्वी के लिये नारी जाति में कौनसा शब्द उसमें से निकल सकेगा। कारण कि चैत्य शब्द स्त्रीलिंग में बोला नहीं जाता। __श्री भगवती सूत्र में (१) अरिहंत, (२) साधु और (३) चैत्य, ऐसे तीन शरण कहे हैं। वहाँ जो 'चैत्य' शब्द का अर्थ 'साधु' करें तो उसमें 'साधु' शब्द अलग से क्यों कहा? तथा ज्ञान कहें तो अरिहंत शब्द से ज्ञान का संग्रह हो गया, क्योंकि ज्ञान रूपरहित है, वह ज्ञानी के सिवाय होता नहीं इसलिये चैत्य से जिनप्रतिमा का ही अर्थ निकलता है। "अरिहंत' ऐसा अर्थ भी संभव नहीं क्योंकि-"अरिहंत" भी प्रथम साक्षात् शब्द में कहा हुआ है।
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