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सोचो कि पहले आरे में ये बावड़ियें आदि कहाँ से आईं ? इस भरतक्षेत्र में नौ कोड़ाकोड़ी सागरोपम से तो युगलिक रहते थे। युगलिक तो बावड़ियाँ आदि बनाते नहीं है, अतः यदि वे शाश्वत नहीं हैं, तो फिर उन्हें किसने बनाया ?
जिस प्रकार ये बावड़ियाँ असंख्य वर्षों से कायम रहीं तो फिर देवताओं की सहायता से मूर्तियाँ भी कायम कैसे न रहे ?
प्रश्न ६३-चैत्य शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है ?
उत्तर-श्री सुधर्मास्वामी के परंपरागत प्राचार्यों ने 'चैत्य' शब्द का जो अर्थ लिखा है वह भगवान् महावीर द्वारा कथित है। परम उपकारी कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचंद्राचार्य ने अपने, अनेकार्थसंग्रह में इस प्रकार अर्थ किया है। .
"चैत्यं जिनौकस्तबिंबं, चैत्यो जिनसभा तरु.।' __ अर्थ-चैत्य कहने से (१) जिन मंदिर (२) जिन प्रतिमा (३) जिनराज की सभा का चोतराबंध वृक्ष ।
इसके सिवाय दूसरा अर्थ शास्त्र में नहीं है, तथा होता भी नहीं । अमरकोष अथवा अन्य कोई भी कोषनथ देखो, उनमें इसके सिवाय दूसरा अर्थ नहीं कहा है। अतः इसके सिवाय मनगढन्त अर्थ करने वालों को झूठा समझना चाहिये। सूत्रपाठों में जहाँ जहाँ उस शब्द का प्रयोग हुप्रा है, वहाँ वहाँ दूसरा अर्थ लागू हो ही नहीं सकता।
प्रश्न ६४–'चैत्य' शब्द का अर्थ कितने ही 'साधु' अथवा 'ज्ञान' करते हैं । क्या यह उचित है ?
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