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________________ २२१ "भरतचक्रवर्ती दिग्विजय कर ऋषभकूट पहाड़ पर पूर्व में हो चुके अनेक चक्रवर्तियों के नाम मिटा कर उन्होंने अपना नाम लिखा।" अब सोचो कि "भरत चक्रवर्ती के पहले अठारह कोड़ा कोड़ी सागरोपम भरतक्षेत्र में धर्म का विरह रहा है, तो इतने असंख्य काल तक मनुष्य लिखित नाम रहे कि नहीं ? अवश्य रहे। तो फिर शंखेश्वर पार्श्वनाथ आदि की मूर्तियां देवता की सहायता से रहें, इसमें क्या प्राश्चर्य है ? ऋषभकूट अादि पहाड़ शाश्वत हैं, पर नाम तो बनावटी है। यदि नाम भी शाश्वत हों तो उनको कोई नहीं मिटा सकता। फिर कोई कहता है कि-'पृथ्वीकाय तो २२००० वर्ष से अधिक नहीं रहते तो क्या देवता आयुष्य बढ़ाने में समर्थ हैं ? उसके उत्तर में कहने का है कि-'मूर्ति पृथ्वीकाय जीव नहीं है; निर्जीव वस्तु है। अनुपम देवभक्ति के द्वारा उसे असंख्य वर्षों तक भी रक्खा जा सकता है, क्योंकि जैन शास्त्रानुसार किसी भी पुद्गल द्रव्य का अनंतकाल तक भी सर्वथा नाश नहीं होता । अर्थात् द्रव्य की अपेक्षा सभी पुद्गल शाश्वत हैं; पर्याय की अपेक्षा से प्रशाश्वत हैं। जैसे पर्वत में से एक पत्थर का टुकड़ा लो तो उस टुकड़े का पर्याय बदलेगा पर पूर्णतया नष्ट तो किसी काल में भी नहीं होगा। उसी रीति से तमाम पुद्गलों को समझना चाहिये ! पुनः श्री जंबूद्वीप-प्रज्ञप्ति में अवसर्पिणी काल के पहले पारे का वर्णन करते हुए कहा है कि__ "घने जंगलों, वृक्षों, फूल-फलों से सुशोभित, सारस हंस आदि जानवरों से भरपूर, ऐसी बावड़ियों तथा पुष्करिणी ..और दीर्धीकाओं से श्री जंबूद्वीप की शोभा हो रही है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org www
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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