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२२० "से कि तं उवासगदसाओ? उवासगदसासु रणं उवासगाणे गगराई उज्जागाइं चेइमाई वरणखंडा रायारणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहामो इहलोइयपर लोइय इडिविसेसा।"
श्री ठाणांग सूत्र में श्रावक को, (१) जिनप्रतिमा (२) जिनमंदिर (३) शास्त्र (४) साधु (५) साध्वी (६) श्रावक-श्राविका' -इन सात क्षेत्रों में धन खर्च करने का हुक्म फरमाया है तथा अन्य सूत्रों में भी ये सात क्षेत्र श्रावक के लिए सेव्य बतलाये हैं । श्रावक आणंद आदि बारह व्रतधारी, दृढ़ धर्मनिष्ठ श्रावक थे। श्री उत्तराध्ययन के २८ वें अध्ययनानूसार सम्यकत्व के पाठ प्राचारों का उन्होंने सेवन किया है। उसमें सात क्षेत्र भी पा जाते हैं क्योंकि प्राचारों में सार्मिक वात्सल्य तथा प्रभावना ये दो प्राचार भी कहे हैं । सार्मिक वात्सल्य में साधु, साध्वी, श्रावक श्राविका-ये चारक्षेत्र जानने तथा प्रभावना में श्री जिनबिंब, श्री जिन मंदिर, तथा शास्त्र-ये तीन गिने जाते हैं ।
आनंद, कामदेवादि श्रावकों के अतिरिक्त प्रदेशी राजा ने भी श्री जिन मंदिर बनवाये हैं।
प्रश्न ६२-पहले असंख्य वर्षों की प्रतिमाएँ होने का कहा पर पुद्गल की स्थिति इतने वर्षों की न होने से किस प्रकार प्रतिमायें स्थिर रह सकती हैं ? . उत्तर-श्री भगवती सूत्र में पुद्गल की जो स्थिति बताई है, वह सामान्य से स्वाभाविक स्थिति बताई है पर जिसकी देव रक्षा करते हैं वे तो असंख्य वर्ष तक रह सकते हैं जैसे श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में लिखा है कि
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