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२१६ हुए हैं जिनकी नकलें श्री तत्व-निर्णय-प्रासाद' नाम के ग्रन्थ में छपी हुई हैं जिसे जिज्ञासु पढ़ सकते हैं।
(१६) संप्रति राजा द्वारा वीर संवत् २९० के बाद में बनवाई हुई लाखों मूर्तियों में से बहुत सी प्रनिमायें मारवाड़, गुजरात के अनेक गाँवों में मौजूद हैं।
पुन: इसके अतिरिक्त निम्न स्थलों पर अनेक प्राचीन प्रतिमाएँ विद्यमान हैं।
(१७) श्री घोधा में श्री नवखंडा पार्श्वनाथ । (१८) श्री फलौदी में श्री फलवृद्धि पार्वनाथ । (१६) श्री भोयणी में श्री मल्लिनाथजी भगवान् । (२०) श्री पाबू के मन्दिरों में अनेक प्राचीन प्रतिमाएँ हैं ।
(२१) श्री कुमारपाल राजा द्वारा बनवाया हुआ श्रीतारंगा जी तीर्थ का गगनचुबी जिनालय और उसमें बिराजमान श्री अजितनाथ स्वामी की विशालकाय भव्य मूति ।
(२२) श्री वरकाणा में वरकाणा पार्श्वनाथ । (२३) श्री सिद्धाचलजी पर हजारों मन्दिर एवं बिब । (२४) श्री गिरनारजी पर मन्दिर और सैंकड़ों प्रतिमायें । (२५) श्री सम्मेतशिखरजी पर रहे अनेक जिनप्रासाद ।
और भी अनेक श्री जिन मन्दिर तथा मूर्तियाँ स्थान-स्थान पर श्री जिनपूजा की प्राचीनता एवं शास्त्रीयता का जीवित प्रमाण देती हैं। यदि मूर्ति पूजा का निषेध होता, तो उपरोक्त जिन मन्दिरों के पीछे करोड़ों रुपयों का खर्च कैसे होता ? सूत्रों में किसी स्थान पर भी श्री जिन पूजा का निषेध नहीं है और स्थान-स्थान पर श्री जिन पूजा की प्राज्ञा है।
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