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प्रश्न ६१ - कई लोग कहते हैं कि श्री वीर संवत् ६७० में साचोरा गाँव में श्री महावीर स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा हुई, उससे पहले मूर्ति थी ही कहाँ ?
उत्तर—इस कथन का कोई प्रमाण नहीं । यदि ऐसा हो तो लाखों वर्ष पूर्व मूर्ति पूजा करने के पाठ, मूल सूत्र में कहाँ से आये ? आज भी हज़ारों तथा लाखों वर्ष के मंदिर तथा मूर्तियाँ मौजूद हैं । उन मंदिरों तथा मूर्तियों की प्राचीनता की अंग्रेज शोधकर्ता तथा अन्य दार्शनिक विद्वान् भी साक्षी देते हैं ।
प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों के लिये कितने ही शास्त्रीय उल्लेख
(१) श्री आवश्यक मूल पाठ में 'वग्गुर' श्रावक द्वारा मल्लिनाथ स्वामीजी का मंदिर पुरिमताल नगरी में बंधवाने का उल्लेख है ।
(२) भरत चक्रवर्ती के श्री अष्टापद पर्वत पर चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ उनके वर्ण, लंछन तथा शरीर के कद अनुसार स्थापित करने का श्री आवश्यक सूत्र के मूल पाठ में कथन है ।
(३) निजाम हैदराबाद के पास में कुल्पाक गाँव में भरत राजा के समय में भरवाई हुई श्री ऋषभनाथ स्वामी की मूर्ति, जो समय के प्रभाव से मंदिर सहित जमीन में दब गई थी, हाल में ही कुछ समय पूर्व प्रगट हुई है। जमीन के अन्दर से मंदिर निकला है । प्रत्यक्ष के लिये प्रमाण की आवश्यकता नहीं । आँखों से देखकर ज्ञात कर लेना कि वह तीर्थ प्राचीन है अथवा अर्वाचीन ? लोग इसे माणिक्यस्वामी की प्रतिमा भी कहते हैं और वह देवाधिष्ठित है ।
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