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________________ (८) श्री मल्लिनाथस्वामी अवेदी थे पर लोक व्यवहार को मान्य रखने के लिये वे स्त्रियों की परिषद में ही बैठते। (8) राग से बचने के लिये साधु को चातुर्मास के सिवाय अकारण एक स्थान पर एक महीने से अधिक नहीं रहना चाहिये पर जो मोहराग बंधने का होता है तो, रहनेमि की तरह एक घड़ी में भी बंध सकता है। फिर भी एक महीने से अधिक रहने पर ही व्यवहार का भंग गिना जाता है अन्यथा नहीं। इस प्रकार व्यवहार मार्ग प्रधानता के अन्य भी सैकड़ों उदाहरण हैं। श्रावक का शुद्ध व्यवहार, रात्रि भोजन आदि का त्याग है । जो इस व्यवहार को तोड़ते हैं वे स्वयं भी अवश्य तत्काल ही नष्ट हो जाते हैं, और जो शुद्ध व्यवहार को अंगीकार करते हैं, वे मोक्ष तक का फल प्राप्त करते हैं । प्रश्न ६०-बारह वर्षीय दुष्काल पड़ने के समय सावद्याचार्यों ने उपदेश देकर मूर्ति पूजा करवाना प्रारंभ किया है, उसके पहले तो कुछ था ही नहीं, ऐसा कई कहते हैं। क्या यह ठीक है ? उत्तर-श्री महावीर स्वामी को बीसवीं पट्ट-परम्परा में श्री स्कंदिलाचार्य हुए और उनके समय में बारह वर्षीय दुष्काल पड़ा था। अब जो उनके बाद हुए आचार्यों ने मूर्तिपूजा चलाई हो तो श्री देवद्धिगरणी क्षमाश्रमरण तो भगवान् महावीर की सत्ताईसवीं पट्ट-परम्परा में हुए हैं; अतः उनको भी सावधाचार्यों में शामिल करना पड़ेगा और उस समय अन्य सैकड़ों श्राचार्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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