________________
जाने वाला था? नहीं, पर व्यवहार बनाए रखने के लिए गृहस्थ का वेश उतारना पड़ा और मुनिवेश धारण करना पड़ा।
(२) साधु बरसते मेह में अपने स्थान पर आवे, परंतु अकेली स्त्री वाले स्थान पर न रुके । मार्ग चलते समय दूसरा रास्ता न मिले तो साधु हरी दूब पर पैर रख कर चले, परन्तु स्त्री के स्पर्श से बचे क्योंकि यह लोक व्यवहार से विरुद्ध है।
(३) केवली महाराज दिन और रात में समान रूप से देखते हैं, फिर भी व्यवहार बनाये रखने के लिये रात में विहार नहीं करते हैं। - (४) युगलिक भाई-बहन, पति-पत्नी बनने के बाद भोग कर के मरकर देवलोक में जाते हैं, परन्तु ऐसा काम यदि आज कोई करे तो उसे व्यवहार मार्ग का उल्लंघन कहा जाता है तथा महा अनर्थकारी गिना जाता है। निश्चित रूप से जीव हिंसा तो समान ही है।
(५) श्री महावीर परमात्मा निश्चित रूप से जानते थे कि, दो साधु मरेंगे पर व्यवहार पालन के लिये उन्होंने बोलने से इन्कार किया।
(६) श्रावक निरंतर प्रारंभ-परिग्रह में बैठा हुआ है और अनेक जीवों को कष्ट पहुंचाता है। फिर भी चोरी की वस्तु लेना, उसके लिए योग्य नहीं। इसका कारण यही तो है कि इससे कहीं लोक व्यवहार का लोप न हो जाय ।
(७) श्री वीर परमात्मा जानते थे कि-'मेरे रोग की स्थिति पक गई है, अत: अब वह मिट जायेगा' परन्तु व्यवहार के लिये तथा अन्य साधुनों को यह बतलाने के लिये कि औषधिसेवन से लाभ होता है, प्रभु ने भी प्रौषधि ग्रहण की।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org