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________________ २०८ प्रत्येक को हजार हजार स्वर्ण मुद्रायें देकर परदेश भेजा और कहा कि, इस धन से व्यापार कर, लाभ प्राप्त कर, शीघ्र लौट प्रायो। बड़े पूत्र ने तो कर्मचारी नियुक्त कर, आने जाने वालों का अच्छा आतिथ्य सत्कार कर, सभी को प्रसन्न कर, अपने व्यवसाय में खुब धन कमाया। दूसरे पुत्र ने विचार किया कि-प्राने पास तो धन बहुत है, उसे बढ़ाकर क्या करना है ? मूलधन बना रहे, इतना काफी है। ऐसा सोचकर मूलधन को कायम रखकर ऊपर का नफा खाने-पीने व मौज-शौक में उड़ा दिया। तीसरे पुत्र ने मन में सोचा कि पिता की मृत्यु के पश्चात् उनकी विपुल धनराशि के मालिक हम ही तो हैं, फिर कमाने की चिंता क्यों करना ? ऐसे अभिमानी विचार से उसने मूल रकम को भी मौज-शौक में उड़ा दी। __ अब कुछ समय पश्चात् तीनों पुत्र, अपने पिता के पास घर पहुँचे । सारी हकीकत पूछने के बाद उस पुत्र को, जिसने मूलधन भी उड़ा दिया था, घर के काम-काज में नौकर की तरह रखकर, अपना गुजारा करने को कहा, अर्थात् श्रेष्ठि पुत्र के पद से हटाकर नौकर बनाया। दूसरे पुत्र को जिसने मूलधन को रखकर उसमें कोई वृद्धि नहीं की, कुछ द्रव्य से व्यापार करने की आज्ञा दी। परन्तु सबसे बुद्धिमान बड़े पुत्र को, जिसने असली रकम के अलावा बड़ा नफा कमाया था, घर का सारा भार सौंपकर घर का मालिक बनाया। ऊपर बताये हुए दृष्टांत का उपनय यह है कि असली धन तो मनुष्य जन्म है। इसमें जिसने अधिक कमाई की, वह धर्ममार्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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