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________________ कठिनाई से बोध करवाती है जबकि इष्ट को मूर्ति इसका साक्षात् बोध करवाती है तथा इष्ट जितना ही पवित्र भाव पैदा करती है। मुस्लिम बाह्य से मूर्तिपूजक न होने पर भी जैसे AIMER हृदय से अपने इष्ट की मूर्ति का पुजारी है वैसे ही कोई आर्य समाजी, ब्रह्मसमाजी अथवा प्रार्थनासमाजी, कबीर पंथी, नानक पंथी अथवा तेरापंथी का हृदय भी इष्ट की मूर्ति की भक्ति की उपेक्षा नहीं कर सकता । अपने इष्ट एवं आराध्य की प्रतिमा अथवा चित्र का अपमान इनमें से कोई भी महन नहीं कर सकता। मूर्ति पूजक अथवा अपूजक दोनों को ऐसे प्रसंगों पर समान प्रांतरिक वेदना होती है। फिर भी जब आकार को नहीं मानने की बात होती है तब ऐसा ही लगता है कि ऐसी बातें केवल अज्ञानजनित ही हैं; विश्व के पदार्थों की वास्तविक व्यवस्था के अज्ञान से ही ऐसी बातों का जन्म होता है। पदार्थ मात्र की चार स्थिति : विश्व के प्रत्येक पदार्थ की कम से कम चार स्थिति होती है; नाम, आकार, पिंड और वर्तमान अवस्था। वस्तु की वर्तमान भाव अवस्था जिस प्रकार वस्तु का बोध कराती है उसी प्रकार इस वस्तु की विगत और भावी अवस्था, इस वस्तु का आकार तथा इस वस्तु का नाम भी वस्तु का ही बोध कराती है। कार्य - कारण आदि संबंध : इस जगत् में प्रत्येक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध होता ही है । ये संबंध नाना प्रकार के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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