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________________ केवल आत्मवंचना है। नाम एवं आकार के बिना अरूपी उपास्य अथवा उनके गुणों का ग्रहण सर्वथा असंभव है। नाम आकार के बोध द्वारा उपास्य के गुणों की याद दिलाता है जबकि आकार नाम के अवलंबन बिना उसके साक्षात् गुणों का स्मरण करवाता है। नाम और आकार के जगत् में रहकर नाम एवं आकार की बातों को नकारना बुद्धि का द्रोह है। अपने इष्ट की साकार भक्ति में अविश्वास करने वालों को भी प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप से अपने इष्ट से संबंध रखने वाली वस्तुओं के आकार की भक्ति में विश्वास करना ही पड़ता है। उदाहरण स्वरूप एक मुसलमान अपने आराध्य की प्रतिमा को सीधी तरह से मानने से इन्कार करता है फिर भी एक छोटी मूर्ति और उसके अंगों की भक्ति के बदले उसके हृदय में पूर्ण मस्जिद, मस्जिद का पूरा प्राकार तथा इसके एक एक अवयव की भक्ति पा ही पड़ती है। मूर्ति में विश्वास नहीं रखने वाला कट्टर मुसलमान मस्जिद की. एक एक ईंट को मूर्ति की तरह ही पवित्रता की दृष्टि से देखता है तथा उसकी रक्षा हेतु अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करता। मूर्ति पर नहीं तो मस्जिद की पवित्रता पर उसका इतना विश्वास बैठ जाता है कि इसके लिए वह अपने प्राण देने पर अथवा दूसरे के प्राण लेने को तैयार हो जाता है। मूर्ति के अपमान के स्थान पर उसे मस्जिद का अपमान खटक जाता है। ___ मस्जिद भी आकार वाली एक स्थूल वस्तु ही है। ऐसी वस्तु अपने इष्ट का साक्षात् बोध कराने के बदले परम्परा से तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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