SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूर्ण एवं उपहासास्पद है उतना ही उपहासास्पद यह कहना है कि त्रसजीवनिकाय की हिंसा की अपेक्षा जिसमें बहुत कम हिंसा रहती है ऐसे पदार्थों से उपास्य की भक्ति करे तथा सर्वत्याग-स्वरुप महान् गुरण की प्राप्ति तक पहुंचने का प्रयत्न करे-ऐसे व्यक्ति का कार्य हिंसापूर्ण है अथवा इस कारण उसका आचरण सावध है। उपास्य के आकार की भक्ति के लिये की जाने वाली हिंसा भक्ति-निमित्तक हिंसा नहीं है पर वह केवल उपासक के स्वाभाविक हिंसक जीवन की अभिव्यक्ति है। उपासक के स्वाभाविक जीवन में हिंसा समाई हुई है अतः वह जितना समय भक्ति कार्य में देता है उतने समय तक वह इस स्वाभाविक हिंसा से मुक्त रहता है। इतना ही नहीं परंतु पूर्ण अहिंसत्व की प्राप्ति के लिये अहिंसा धर्म की चोटी पर पहुंचे हुए परम् अहिंसक परमात्मा की वह भक्ति करता है और इसके परिणामस्वरूप वह भविष्य में सावध से हटकर निरवद्यता की ओर अधिक से अधिक आगे बढ़ता है। अपने जीवन की स्वाभाविक सावद्यता का आरोप भक्ति अथवा गुण प्राप्ति के कार्यों पर करने वाला अज्ञानी व्यक्ति ऊपर बताये हुए सभी लाभों से वंचित रह जाता है। इतना ही नहीं पर परमोपास्य की भक्ति के एकमात्र राजमार्ग से स्वयं भी च्युत होता है तथा दूसरों को भी च्युत करता है। आकार को नहीं मानने की बातें केवल अज्ञान जन्य है। ___ नाम-भक्ति या आकार-भक्ति को छोड़कर केवल गुण-भक्ति की बातें करने वाले अथवा नाम भक्ति को मानकर प्राकार भक्ति को छोड़ देने वाले-उपास्य की भक्ति कर सकते है-ऐसा मानना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy