________________
किन्तु कोई भी सभ्य व्यक्ति इस कथन से सहमत नहीं हो सकता। अधिक सावध से बचने के लिये अल्प सावध के उपयोग को भी यदि सावध का कार्य माना जाय तो इस धरती पर कोई भी निरवद्य कार्य नहीं रहेगा अथवा रहेगा तो केवल एक ही जिसमें हाथ पैर हिलाये बिना शून्य रूप से (जड़वत्) बैठे रहना या सोए रहना होगा। दूसरे शब्दों में मृतावस्था ही निरवद्य बन कर शेष रहेगी। संपूर्ण जीवित अवस्था सावध है। इस स्थिति को भक्ति अथवा गुण प्राप्ति के कार्य में प्रारोपित करना यह तो भक्ति तथा गुण रहित रहने एवं रखने का ही एक राजमार्ग है।
बालक ज्ञान रहित एवं क्रीड़ाशील स्वभाव का होता है। उसे ज्ञानी बनाने के प्रयत्न करने पर भी अपने खेलने के स्वभाव के कारण वह शीघ्र ज्ञानी नहीं बन सकता पर केवल इसी बात पर बालक के अज्ञानी रहने का दोष पढ़ाने में प्रयत्नशील शिक्षक को नहीं दिया जा सकता। शिक्षक पर ऐसा दोष लगाना जैसे अनुचित है वैसे ही सदा सावध जीवन जीने वाले भक्त व्यक्ति की भक्ति की क्रिया को सावध कहना भी अनुचित है। ___मांस भोजी व्यक्ति को मांसाहार की आदत छुड़वाने के लिये कोई उपकारी यदि उसे वनस्पति आहार की सलाह दे तो केवल इतने पर से ही वनस्पति को सेवन करने वाला अथवा ऐसी सलाह देने वाला हिंसक है अथवा हिंसक बन जाता है-- ऐसा मानना दीवानापन ही है। इसी प्रकार यदि कोई वैश्या पतिव्रता बनने का प्रयत्न करे अथवा कोई चोर अपनी चोरी का कार्य छोड़कर किसी धंधे पर लगने का प्रयत्न करे तो वह पापी अथवा हिंसक बन जाता है--ऐसा कहना जितना निर्बुद्धि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org