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बनवाई हुई जिन प्रतिमाओं का भावपूर्वक दर्शन करेगा तो वह इसी भव में मोक्ष में जायेगा । इस बात का निश्चय करने के लिये, श्री गौतम स्वामी अष्टापद पर चढ़े तथा यात्रा करके उसी भव में मोक्ष गये, ऐसा श्री श्रावश्यक निर्युक्ति में है ।
(१२) श्री भगवती सूत्र के मूल पाठ में कहा है कि भाव पूर्वक श्रीजिनमूर्ति का शरण लेने पर कभी नुकसान नहीं होता ।
(१३) चौदह पूर्वघर श्री भद्रबाहुस्वामी श्री श्रावश्यक नियुक्ति में फरमाते हैं कि
'प्रकरिणपवत्तमारणं, विरयाविरयाणं एस खलु जुत्तो । संसारपयणुकरणे, दव्वत्थए कुवदिट्ठतो ।। १ ।।
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भावार्थ - देश विरति श्रावक को पुष्षादि के द्वारा द्रव्य - पूजा अवश्य करनी चाहिये । यह द्रव्यपूजा कूए के दृष्टांत से संसार को पतला करने वाली है ।
(१४) टीकाकार भगवान् श्री हरिभद्रसूरिजी ने श्री आवश्यक वृत्ति में ऐसा बताया है कि प्रभु पूजा पुण्य का अनुबंध करने वाली तथा बहु निर्जरा के फल को देने वाली है ।
(६५) श्री अभयदेवसूरिजी ने पूजा के फल को बताते हुए कहा है कि यद्यपि श्री जिनपूजा में स्वरूप हिंसा दिखाई देती है, फिर भी वह पूजा करने से गृहस्थ (कुए के दृष्टांत से ) शुद्ध होता है तथा परिणाम की निर्मलता के अनुक्रम से मुक्तिफल को प्राप्त करता है ।
(१६) गुणवर्मा राजा के सत्रह पुत्रों में से प्रत्येक ने भित्र -- भिन्न प्रकार की पूजा की तथा वे उसी भव में मोक्ष गये, ऐसा.
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