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स्वामी की आज्ञा से कृष्ण राजा ने तीन उपवास किये | धरणेन्द्र मे आकर श्री पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति दी, जिसके स्नान जल से 'जरा' टूट गई और सारे सैनिक होश में आ गये । यह मूर्ति श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ के नाम से अब भी गुजरात में विद्यमान है (यह कथन श्री हरिवंश चरित्र में है ) ।
(८) नागार्जुन जोगी को कहीं भी स्वर्ण सिद्धि नहीं हुई । अन्त में श्री पादलिप्ताचार्य के वचन से श्री पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा के सामने श्रद्धापूर्वक एकाग्रता करने से वह सिद्धि प्राप्त हुई । इससे वह योगी परम सम्यक्त्वधारी श्रावक बना और गुरु पादलिप्ताचार्य की कीर्ति के लिये श्री शत्रुञ्जय की तलेटी में पालीताणा नगर बसाया, ऐसा श्री पादलिप्त चरित्र में वर्णन है ।
(e) श्री श्रीपाल राजा तथा सात सौ कोढ़ियों का अठारह प्रकार का कोढ उज्जैन नगर में श्री केसरीयानाथजी की मूर्ति के सामने, श्री सिद्ध चक्र यंत्र के स्नान जल से दूर हो गया तथा उनकी काया कंचन के समान बन गई । वह मूर्ति हाल में मेवाड़ में धुलेवा नगर में बिराजमान है ( देखो श्री श्रीपाल चरित्र ) ।
(१०) श्री अभयदेवसूरिजी का गलत कोढ़ श्री स्तंभन पार्श्वनाथजी की मूर्ति के स्नानजल से गया । उसके पश्चात् उन्होंने नव अंग सूत्रों की टीका रची ।
(११) श्री गौतम स्वामी की शंका निवारण करने के लिये भगवान् ने श्रीमुख से फरमाया है कि जो व्यक्ति आत्मलब्धि से श्री अष्टापद तीर्थ पर चढ़ कर भरत राजा द्वारा
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