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________________ २०४ (३) श्री द्वीपसागरपन्नति तथा श्री हरिभद्रसूरिकृत व श्यक की बड़ी टीका के अनुसार है श्री जिनप्रतिमा के प्राकार की मछलियाँ समुद्र में होती हैं । जिनको देखकर अनेक भव्य मछलियों को जातिस्मरणज्ञान प्राप्त होता है और बारह व्रत धाररण करा सम्यक्त्व सहित आठवें देवलोक में जाती हैं। इस प्रकार तिर्यंच जाति को भी जिनप्रतिमा के आकार मात्र के दर्शन से, अलभ्य लाभ प्राप्त होता है, तो मनुष्य के अलभ्य लाभ प्राप्त हो, इसमें क्या शंका हो सकती है ? 1 ( ४ ) श्री ज्ञाता सूत्र में श्री तीर्थंकर गोत्र बँध के बीर स्थानक कहे हैं । उसके अनुसार राजा रावण ने प्रथम अरिहंत पद की आराधना, श्री अष्टापद पर रहने वाले तीर्थंकर देव क मूर्ति की भक्ति कर तीर्थकर गोत्र बाँधा, ऐसा रामायण में कह है । यह रामायण श्री हेमचन्द्राचार्यजी ने सत्रहसौ वर्ष पू हुए, श्री जिनसेनाचार्य कृत पद्मचरित्र के आधार से बनाई ! और जिसे प्रायः तमाम जैन मानते हैं । (५) उसी ग्रंथ में लिखा है कि रावण ने श्री शांतिना प्रभु की मूर्ति के सामने बहुरुपिणी विद्या की साधना की, प्रभु भक्ति से वह विद्या सिद्ध हो गई । (६) श्री पद्मचरित्र में कहा है कि लंका जाते सम श्री रामचन्द्रजी ने समुद्र पार उतरने के लिये श्री जिनमूर्ति सामने तीन उपवास किये । धरणेन्द्र ने आकर श्री पार्श्वना स्वामी की मूर्ति दी, जिसके प्रभाव से उन्होंने आसानी से समु पार कर लिया । (७) जरासंध राजा ने कृष्ण महाराज की सेना पर 'जर डालो, सभी सैनिकों को बेहोश कर दिया, तब श्री नेमनाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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