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दृष्टि है । इस प्रकार श्री जिनपूजा सम्यक्त्व का मूल है और सम्यक्त्व, यह सभी व्रतों का मूल है । सम्यक्त्व के बिना सारी क्रियाएँ निष्फल हैं ।
प्रश्न ५८ - तपस्या करने से अनेक लब्धियाँ उत्पन्न होती हैं परन्तु क्या श्री जिनप्रतिमा की पूजा करने से किसी को लब्धि या ज्ञान की उत्पत्ति होना सुनी है ?
उत्तर - श्री रायपसेणी, श्री भगवती सूत्र, श्री जोवाभिगम, श्री ज्ञातासूत्र, श्री उववाई सूत्र, श्री आवश्यक सूत्रादि बहुत से सूत्रों में मूर्तिपूजा को कल्याणकारी, मंगलकारी और अंत में मोक्ष देने वाली कहा है । उत्कृष्ट पुण्य जो तीर्थंकर गोत्र है, वह भी जिनपूजा से बँधता है । अन्य देव की मूर्ति की आराधना से भी लोगों के धन, धान्य, पुत्र आदि की प्राप्ति दृष्टांत विद्यमान हैं तो श्री वीतराग की मूर्ति की आराधना से प्रत्येक मनवांछित लब्धि प्राप्त हो, - इसमें क्या आश्चर्य है ? इसके संबंध में दृष्टांत निम्नानुसार हैं
( १ ) अनार्य देश का निवासी श्री आर्द्र कुमार श्री ऋषभदेव स्वामी की प्रतिमा के दर्शन से जातिस्मरणज्ञान प्राप्त कर, वैराग्य दशा में लीन हुआ। जिसका वर्णन बारह सौ वर्ष पूर्व लिखित श्री सुयगडींग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध के छट्ट अध्ययन की टीका में है ।
(२) श्री महावीरस्वामी के चौथे पट्टधर तथा श्री दशवैकालिक सूत्र के कर्ता श्री शय्यंभवसूरि को, श्री शांतिनाथजी की प्रतिमा के दर्शन से प्रतिबोध प्राप्त हुआ, ऐसा श्री कल्पसूत्र की स्थिरावली की टीका में कहा है ।
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