________________
२०१
जिससे मनुष्य के पैरों से उनको हानि अथवा कष्ट न हो । ता समवसरण के बीच गढ़ की दीवार के पास चारों ओर फूलों की पंक्ति ऐसी बनाते हैं कि जिससे आने जाने वाले साधुओं के पैर के नीचे भी पुष्प नहीं आवें । जिस प्रकार बाग में चारों ओर हरी दूब होती है पर बीच में आने जाने की सड़कें तथा खुली जमीन रहती है और लोग वहाँ बैठते हैं वैसे ही फूलों की वर्षा होने में आश्चर्य नहीं है।
प्रश्न ५५-समवसरण में सचित्त वस्तु को बाहर रखना और अचित्त को अन्दर ले जाना, ऐसी प्राज्ञा है, इसका मेल कैसे बिठाना ?
उत्तर–सचित्त वस्तु को बाहर छोड़ने की जो बात कहीं गई है वह अपने उपयोग की वस्तु के लिये है किन्तु पूजा की सामग्री के लिये नहीं । यदि सचित्त वस्तु मात्र का निषेध करोगे तो मनुष्य आदि का शरीर भी सचित्त है अतः उसको भी नहीं ले जाना चाहिये। पर ऐसा होने से तो समवसरण में कोई जा ही नहीं सकता। ___जीवयुक्त पदार्थ की अन्दर प्रवेश करने की शक्ति है, अचित्त की नहीं तथा सचित्त को छोड़कर अचित्त को अंदर ले जाने की ही बात मानोगे तो राजा के छत्र, चँवर, छड़ी, तलबार, मुकुट तथा सभी लोगों के जूते भी अचित्त होने से अंदर ले जाये जा सकते हैं, पर उसके लिये तो मना है। उसी प्रकार खाने की प्रचित्त वस्तु भी बाहर छोड़नी पड़ती है। इससे सिद्ध होता है कि पूजा की सामग्री सचित्त हो या अचित्त उसे समवसरण में ले जाने में कोई आपत्ति नहीं । इसी प्रकार यह भी समझना चाहिये कि अपने खान पान की कोई भी वस्तु. चाहे वह अचित्त हो, फिर भी भीतर नहीं ले जाई सकती।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org